श्री गणेशाय नम: | श्री सरस्वत्यै नम:। श्री गुरुभ्यो नम: ।
श्री इष्टदेवताभ्यो नम: । श्रीकुलदेवताभ्यो नम: ।
कर दर्शन ( सकाळी उठल्यावर पहिल्यांदा स्वतःच्या तळहाताचे दर्शन घ्यावें व हा श्लोक म्हणावा ) - ( Kar darshan )
कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती ॥
करमूले तु गोविन्दं प्रभाते करदर्शनम् ॥ १ ॥
भूमिवंदन ( Bhumi Vandan )
समुद्रेवसने देवी पर्वतस्तनमण्डले ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे ॥ १ ॥
गुरु वंदना ( Guru Vandana )
गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरु: साक्षात् परब्रमःतस्मै श्रीगुरुवे नम: ॥
जेवणापूर्वीची प्रार्थना ( Jevanapurvichi Prarthana )
वदनी कवळ घेता नम घ्या श्रीहरीचे | सहज हवन होते नाम घेता फुकाचे | जीवन करि जीवित्व अन्न हे पूर्ण ब्रम्ह | उदारभरण नोहे जाणिजे यज्ञ कर्म || १ || जनी भोजनी नाम वाचे वदावे | आतु आदरे गद्य घोषे म्हणावे || हरी चिंतने अन्न सेवीत जावे | तरी श्रीहरी पाविजे तो स्वभावे || २ |
उपासनेला दृढ चालवावे | भूदेव संतासी सदा नमावे | सत्कर्मयोगे वय घालवावे| सर्वामुखी मंगल बोलवावे || ३ || ॐ सह नाववतु | सह नौ भुनक्तु | सहवीर्य करवावहै | तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ||
|| ॐ शांति: शांति: शांति: ||
शुभं करोति ( दिवे लागण्याच्या वेळी / संध्याकाळी म्हणावयाचा श्लोक ) ( shubham Karoti )
शुभं करोति कल्याणं आरोग्यं धन संपद: |
शत्रुबुद्धीविनाशाय दीपज्योतिर्नमोस्तुsते |
दिव्या दिव्या दीपत्कार, कानी कुंडले, मोतीहार |
दिव्याला देखून नमस्कार ||
ये गें लक्ष्मी बैस गें बाजे | अमुचे घर तुला साजे ||
तिळाचे तेल कापसाची वात | दिवा तेवे मध्यान् रात ॥
दिव लगल तुळशीपाशी |
उजेड पडला विष्णूपाशी ||
माझा नमस्कार तेहतीस कोटि देवांशी |
झाडाझुडांनो दिवा पहा | एड टळो, पिडा टळो ||
घरातली पिडा बाहेर जावो | बाहेरची लक्ष्मी घरात येवो ||
घराच्या धन्याला , घरधनिणीला | उदंड औक्ष देवो ||
संकष्टनाशन गणेशस्तोत्रं ( Sankashtanashan Ganeshstotra )
श्री गणेशाय नम: | नारद उवाच |
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकं
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयु:कामार्थसिध्दये ||१||
प्रथमं वक्रतुंड च एकदंतं द्वितीयकं |
तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकं ||२||
लंबोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च |
सप्तमं विघ्नराजेंद्र धूम्रवर्णं तथाष्टमं || ३||
नवमं भालचंद्र च दशमं तु विनायकं |
एकादशं गणपति द्वादशं तु गजाननं || ४ ||
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं य: पठेन्नर: |
नच विघ्न भयं तस्य सर्व सिद्धि करं प्रभो || ५ ||
विद्यार्थी लभते विद्या धनार्थी लभते धनं |
पुत्रार्थी लभते पुत्रा मोक्षार्थी लभते गतिम् || ६ ||
जपेत् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलं लभेत् |
संवत्सरेंण सिद्धिंच लभते नात्र संशय: || ७ ||
अष्टभ्यो ब्राम्हणेभ्यश्र्च् लिखित्वा य: समर्पयेत |
तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादत: || ८ ||
॥ इति श्री नारद पुराणे संकष्ट नाशनं नाम महागणपति स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
श्री शिवस्तुती ( Shiv stuti )
कैलासराणा शिव चंद्रमौळी | फणींद्र माथा मुकुटी झळाळी | कारुण्यसिंधू भवदु:खहारी | तुजवीण शंभो मज कोण तारी || १|| रवींदु दावानल पूर्ण भाळी | स्वतेज नेत्री तिमिरांध जाळी | ब्रम्हांडधीशा मदनांतकारी | तुजवीण || २ || जटा विभूती उटी चंदनाची | कपालमाला प्रित गौतमीची | पंचानना विश्र्वनिवांतकारी | तुजवीण || ३ || वैराग्ययोगी शिव शूलपाणी | सदा समाधी निजबोधवाणी | उमाविलासा त्रिपुरांतकारी | तुजवीण || ४ || उदार मेरू पति शैलजेचा | श्री विश्वनाथ म्हणती सुरांचा | दयानिधी तो गजचर्मधारी | तुजवीण || ५ || ब्रम्हादि वंदी अमरादिनाथ | भुजंगमाला धरि सोमकांत | गंगा शिरी दोष महा विदारी | तुजवीण || ६ || कर्पूरगौरी गिऱिजा विराजे | हळाहळे कंठ निळाचि साजे | दारिद्र्यदु:खें स्मरणे निवारी | तुजवीण || ७ || स्मशानक्रीडा करिता सुखावे | तो देवचुडामणि कोण आहे | उदासमुर्ती जटाभस्मधारी | तुजवीण || ८ || भूतादिनाथ अरि अंतकाचा | तो स्वामी माझा ध्वज शांभवाचा | राजा महेश बहुबाहुधारी | तुजवीण || ९ || नंदी हराचा हरि नंदिकेश | श्रीविश्र्वनाथ म्हणती सुरेश | सदाशिव व्यापक तापहारी | तुजवीण || १० || भयानक भीम विक्राळ नग्न | लीलाविनोदे करि काम भग्न | तो रुद्र विश्र्वंभर दक्ष मारी | तुजवीण || ११ || इच्छा हराची जग हे विशाळ | पाळी सुची तो करि ब्रम्हगोळ | उमापती भैरव विघ्नहारी | तुजवीण || १२ || भागीरथीतीर सदा पवित्र | जेथें असे तारक ब्रम्हामंत्र | विश्र्वेश विश्र्वंभर त्रिनेत्रधारी | तुजवीण || १३ | प्रयाग वेणी सकळा हराच्या | पादारविंदी वहाती हरीच्या | मंदाकिनी मंगल मोक्षधारी | तुजवीण || १४ || कीर्ती हराची स्तुती बोलवेना | कैवल्यदाता मनुजा कळेना | एकाग्रनाथ विष अंगिकारी | तुजवीण || १५ || सर्वांतरी व्यापक जो नियंता | तो प्राणलिंगाजवळी महंता | अंकी उमा ते गिरिरूपधारी | तुजवीण || १६ || सदा तपस्वी असे कामधेनू | सदा सतेज शशिकोटिभानू | गौरीपती जो सदा भस्मधारी | तुजवीण || १७ || कर्पूरगौरी स्मरल्या विसावा | चिंता हरी जो भजका सदैवा | अंती स्वहीत सूचना विचारी | तुजवीण || १८ || विरामकाळी विकळ शरीर | उदास चित्ती न धरीच धीर | चिंतामणी चिंतने चित्तहारी | तुजवीण || १९ || सुखवसानें सकळे सुखाची | दु:खवसाने टळती जगाची | देहावसानी धरणी थरारी | तुजवीण || २० || अनुहत शब्द गगनीं न माय | त्याचेनि नादे भाव शून्य होय | कथा निजांगे करुणा कुमारी | तुजवीण || २१ || शांति स्वलीला वदनी विलासे | ब्रम्हांडगोळी असुनी न दिसे | भिल्ली भवानी शिव ब्रम्हचारी | तुजवीण || २२ || पितांबरे मंडित नाभि ज्याची | शोभा जडीत वरि किंकिणीचि | श्रीदेवदत्त दुरितांतकारी | तुजवीण || २३ || जिवा-शिवाची जडली समाधी | विटला प्रपंची तुटली उपाधी | शुद्धस्वरे गर्जति वेद चारी | तुजवीण || २४ || निधानकुंभ भरला अभंग | पहा निजांगे शिव ज्योतिर्लिंग | गंभीर धीर सुर चक्रधारी | तुजवीण || २५ || मंदार बिल्वे बकुलें सुवासी | माला पवित्र वहा शंकरासी | काशीपुरी भैरव विश्र्व तारी | तुजवीण || २६ || जाई जुई चंपक पुष्पजाती | शोभे गळा मालतिमाळ हाती | प्रतापसूर्यशरचापधारी | तुजवीण || २७ || अलक्ष्यमुद्रा श्रवणी प्रकाशे | संपूर्ण शोभा वदनी विकासे | नेई सुपंथे भवपैलतीरी | तुजवीण || २८ || नागेशनामा सकळा झिव्हाळा | मना जपे रें शिमंत्रमाळा | पंचाक्षरी ध्यान गुहाविहारी | तुजवीण || २९ || एकांति ये रे गुरुराज स्वामी | चैतन्यरुपी शिव सौख्य नामी | शिणलो दयाळा बहुसाल भारी | तुजवीण || ३० || शास्त्राभ्यास नको श्रुती पढू नको तीर्थासि जाऊ नको | योगाभ्यास नको व्रते मख नको तीव्रे तपे ती नको | काळाचे भय मानसी धरू नको दृष्टास शंकू नको | ज्याचीया स्मरणे पतीत तरती तो शंभु सोडू नको || ३१ ||
श्रीरामस्तुति ( Shri Ram Stuti )
संसारसंगे बहु शीणलो मी | कृपा करी रे रघुराजस्वामी | प्रारब्ध माझे सहसा टळेना | तुजवीण रामा मज कंठवेना || १ || मन हे विकारी स्थिरता न ये रे | त्याचेनि संगे भ्रमते भले रे | अपूर्व कार्या मन हे विटेना || तुजवीण रामा मज कंठवेना || २ || मायाप्रपंची बहु गुंतलो रे | विशाळ व्याधीमधें बांधलो रे | देहाभिमाने अति राहवेना | तुजवीण रामा मज कंठवेना || ३ || दारिद्र्यदु:खे बहु कष्टलो मी | संसारमायेतचि गुंतलो मी | संचीत माझे मजला कळेना | तुजवीण रामा मज कंठवेना || ४ || लक्ष्मीविलासी बहु सौख्य वाटे | श्रीराम ध्याता मनि कष्ट मोठे | प्रपंचवार्ता वदता विटेना | तुजवीण रामा मज कंठवेना || ५ || अहोरात्र धंदा करिता पुरेना | प्रारब्धयोगे मज राहवेना | भवदु:ख माझे कधीही टळेना | तुजवींण रामा मज कंठवेना || ६ || तीर्थासी जाता बहु दु:ख वाटे | विषयातरी राहुनी सौख्य वाटे | स्वहीत माझे मजला कळेना | तुजवीण रामा मज कंठवेना || ७ || मी कोठुनी कोण आलो कसा हो | स्त्रीपुत्र-स्वप्नातची गुंतलो हो | ऐसे कळोनी मन हे विटेना | तुजवीण रामा मज कंठवेना || ८ || असत्य व्याख्यानी मुकाच झालो | अदत्तदोषे दु:खी बुडालो| अपूर्व करणी कशी आठवेना | तुजवीण रामा मज कंठवेना || ९ || आब्रम्हमूर्ती भज रामसिंधू | चैतन्य स्वामी निजदीनबंधू | अभ्यंतरी प्रेम मनी ठसेना | तुजवींण रामा मज कंठवेना || १० || विश्रांति देही अणुमात्र नाही | कुळाभिमाने पडलो प्रवाही | अशातुनी दूर कधी कळेना | तुजवीण रामा मज कंठवेना || ११ || विषयी जनानी मज आळवीले | प्रपंचपाशातचि बुडवीले | स्वहीत माझे मजला दिसेना | तुजवींण रामा मज कंठवेना || १२ || नरदेहदोषा वर्णू किती रे | उच्चाट माझे मनि वाटती रे | लल्लाटरेषा कधि पालटेना | तुजवीण रामा मज कंठवेना || १३ || मजला अनाथा प्रभु तूचि दाता | मी मूढ़ की जाण असेची आता | दासा मनी आठव वीसरेना | तुजवीण रामा मज कंठवेणा || १४ ||
श्री दुर्गा स्तोत्र ( Shri Durga Stotra )
श्री गणेशाय नम : || श्री दुर्गायै नम : || नगरांत प्रवेशले पंडुनंदन | तो देखिलें दुर्गास्थान | धर्मराज करी स्तवन | जगदंबेचे तेधवां || १ || जय जय दुर्गे भुवनेश्वरी | यशोदागर्भसंभवकुमारी | इंदिरारमणसहोदरी | नारायणी चंडिकेंबिके || २ || जय जय जगदंबे विश्र्वकुटुंबिनी | मूळस्फूर्ति प्रणवरुपिणी ब्रम्हानंदपददायिनी | चिद्विलासिनी अंबिके तू || ३ || जय जय धराधरकुमारी | सौभाग्यगंगे त्रिपुरसुंदरी | हेरंबजननी अंतरी | प्रवेशी तू आमुचिया || ४ || भक्तहृदयारविंदभ्रमारी | तू कृपाबळे निर्धारी | अतिमूढ निगमार्थ विवरी | काव्यरचना करी अद्भुत || ५ || तुझिये कृपावलोकनेंकरून | गर्भाधासी येतील नयन | पांगुळ करील गमन | दूर पंथे जाऊनी || ६ || जन्मादारभ्य जो मुका | होय वाचस्पतीसमान बोलका | तू स्वानंदसरोवरमराळिका | होसी भाविकां सुप्रसन्न || ७ || ब्रम्हानंदे आदिजननी | तव कृपेची नौका करुनी | दुस्तरं भवसिंधू उल्लंघुनी | निवृत्तीतटा नेईजे || ८ || जय जय आदिकुमारिके | जय जय मूळपीठनायके | सकलसौभाग्यदायिके | जगदंबिके मूळप्रकृति || ९ || जय जय भार्गवप्रिये भवानी | भयनाशके भक्तवरदायिनी | सुभद्रकारिके हिमनगनंदिनी | त्रिपुरसुंदरी महामाये || १० || जय जय आनंदकासारमराळिके | पद्मनयने दुरितवनपावके | त्रिविधतापभवमोचके | सर्व व्यापके मृडानी || ११ || शिव मानसकनकलतिके | जय चातुर्यचंपककलिके | शुंभनिशुंभदैत्यांतके | निजजनपालके अपर्णे || १२ || तवमुखकमलशोभा देखोनी | इंदुबिंब गेले विरोनी | ब्रम्हादिदेव बाळे तान्ही | स्वानंदसदनी निजविसी || १३ || जीव शिव दोन्ही बाळके | अंबे त्वां निर्मिली कौतुकें | स्वरूप तुझे जीव नोळखे | म्हणोनि पडिला आवर्ती || १४ || शिव तुझे स्मरणी सावचित्त | म्हणोनि तो नित्यमुक्त | स्वानंदपद हाता येत | तुझे कृपेनें जननीये || १५ || मेळवूनि पंचभूतांचा मेळ | त्वां रचिला ब्रम्हांडगोळ | इच्छा परततां तत्काळ | क्षणे निर्मूल करिसी तू || १६ || अनंत बालादित्यश्रेणी | तव प्रभेमाजी गेल्या लपोनी | सकलसौभाग्यशुभकल्याणी | रमारमणवरप्रदे || १७ || जय शंबरऱिपुहरवल्लभे | त्रैलोक्यनगरारंभस्तंभे | आदिमाये आत्मप्रभे | सकलारंभे मूळप्रकृति || १८ || जय करुणामृतसरिते | भक्तपालके गुणभरिते | अनंत ब्रम्हांड फलांकिते | आदिमाये अन्नपूर्णे || १९ || तू सच्चीदानंदप्रणवरुपिणी | सकलचराचरव्यापिनी | सर्गस्थित्यंतकारिणी भवमोचनी ब्रम्हानंदे || २० || ऐकुनि धर्माचे स्तवन | दुर्गा जाहली प्रसन्न | म्हणे तुमचे शत्रु संहारीन | राज्यी स्थापीन धर्माते || २१ || तुम्ही वास करा येथ | प्रकटो नेदी जनांत | शत्रु क्षय पावती समस्त | सुख अद्भुत तुम्हां होय || २२ || त्वां जें स्तोत्र केलें पूर्ण | तें जें त्रिकाळ करिती पठण | त्यांचे सर्व काम पुरवीन | सदा रक्षीन अंतर्बाह्य || २३ ||
|| इति श्री युधिष्ठिरविरचितं दुर्गा स्तोत्रं समाप्तम ||
श्री मारुती स्तोत्र ( Shri Maruti Stotra )
भीमरूपी महारुद्रा , वज्रहनुमान मारुती | वनारी अंजनीसूता, रामदूता प्रभंजना || १ || महाबळी प्राणदाता, सकळा उठवी बळे | सौख्यकारी दु:खहारी, धूर्त वैष्णवगायका || २ || दीननाथा हरीरूपा, सुंदरा जगदंतरा | पातालदेवताहंता, भव्यसिंदूरलेपना || ३ || लोकनाथा जगन्नाथा , प्राणनाथा पुरातना | पुण्यवंता पुण्यशीला, पावना परितोषका || ४ || ध्वजांगे उचली बाहो आवेशे लोटला पूढे | काळाग्नि काळरुद्राग्नि, देखता कांपती भये || ५ || ब्रम्हांडे माइली नेणो , आंवळे दंतपंगती | नेत्राग्नि चालिल्या ज्वाळा, भ्रुकुटी ताठिल्या बळे || ६ || पुच्छ तें मुरडिले माथां, किरीटी कुंडलें बरी | सुवर्णकटिकांसोटी, घंटा किंकिणी नागरा || ७ || ठकारे पर्वताऐसा, नेटका सडपातळू | चापळांग पाहतां मोठें, महा विध्युलतेपरी || ८ || कोटिच्या कोटि उड्डाणे , झेपांवे उत्तरेकडे | मंद्राद्रीसारिखा द्रोणू , क्रोधे उत्पाटिला बळे || ९ || आणिला मागुती गेला , आला गेला मनोगती | मनासी टाकीलें मागे , गतीसी तुळणा नसे || १० || अणुपासोनी ब्रम्हांडयेवढा होत जातसे | तयासी तुळणा कोठें, मेरूमांदार धाकुटे || ११ || ब्रम्हांडाभोवते वेढे, वज्रपुच्छे करू शके | तयासी तुळणा कैची , ब्रम्हांडी पाहतां नसे || १२ || आरक्त देखिलें डोळा , ग्रासिले सूर्यमंडळा | वाढतां वाढतां वाढे , भेदिले शून्यमंडळा || १३ || धनधान्यपशुवृद्धी, पुत्रपौत्र समग्रही | पावती रूपविद्याही, स्तोत्रपाठे -करुनिया || १४ || भूतप्रेतसमंधादि, रोगव्याधी समस्तही | नासती तूटती चिंता , आनंदे भीमदर्शनें || १५ || हे धरा पंधरा श्र्लोकी , लाभली शोभली बरी | दृढदेहो निसंदेहो, संख्या चंद्रकळागुणें || १६ || रामदासी अग्रगण्यू, कपि कुळासि मंडणू | रामरुपी अंतरात्मा, दर्शने दोष नासती || १७ ||
|| इति श्रीरामदासकृत संकटनिरसन मारुती स्तोत्र संपूर्णम ||
श्री सूर्य स्तुती ( Shri Surya Stuti )
जयाच्या रथा एकची चक्र पाही | नसे भूमि आकाश आधार कांही || असे सारथी पांगुळा ज्या रथासी | नमस्कार त्या सूर्यनारायणासी || १ || करी पद्म माथां किरीटी झळाळी | प्रभा कुंडलांची शरीरा निराळी || पहा रश्मि ज्याची त्रिलोकासी कैसी | नमस्कार त्या सुर्यनारायणासी || २ || सहस्रद्वये दोनशे आणि दोन | क्रमी योजने जो निमिषार्धतेन || मन कल्पवेना जयाच्या त्वरेसी | नमस्कार त्या सुर्यनारायणासी || ३ || विधीवेदकर्मासी आधारकर्ता | स्वधाकार स्वाहादि सर्वत्र भोक्ता || असे अन्नदाता समस्तां जनांसी | नमस्कार त्या सुर्यनारायणासी || ४ || युगें मंत्रकल्पांत ज्याचेनि होती | हरीब्रम्हरुद्रादि ज्या बोलिजेती || क्षयांती महाकाळरूप प्रकाशी | नमस्कार त्या सुर्यनारायणासी || ५ || शशी तारका गोवुनी जो ग्रहाते | त्वरें मेरू वेष्टोनिया पुर्वपंथे || भ्रमें जो सदा लोक रक्षावयासी | नमस्कार त्या सुर्यनारायणासी || ६ || समस्ता सुरांमाजी तू जाण चर्या| म्हणोनिच तू श्रेष्ठ त्या नाम सूर्या || दुजा देव तो दाखवी स्वप्रकाशी | नमस्कार त्या सुर्यनारायणासी || ७ || महामोह तो अंधकारासि नाशी | प्रभा शुद्ध सत्वाची अज्ञान नाशी || अनाथां कृपा जो करी नित्य ऐसी | नमस्कार त्या सुर्यनारायणासी || ८ || कृपा ज्यावरी होय त्या भास्कराची | न पाहू शके शत्रु त्याला विरंची || उभ्या राहती सिद्धी होऊनी दासी || नमस्कार त्या सुर्यनारायणासी || ८ || फळे चंदने आणि पुष्पेकरोनी || पूजावें बरे एकनिष्ठा धरोनी || मानी इच्छिले पाविजे त्या सुखासी | नमस्कार त्या सुर्यनारायणासी || १० || नमस्कार साष्टांग बापा स्वभावे | करोनी तया भास्करालागि ध्यावे | दरिद्रे सहस्त्रादी जो क्लेश नाशी | नमस्कार त्या सुर्यनारायणासी || ११ || वरी सुर्य आदित्य मित्रादि भानू | विवस्वान इत्यादीही पादरेणू | सदा वांछिती पूज्य ते शंकरासी | नमस्कार त्या सुर्यनारायणासी || १२ |||
श्री व्यंकटेश स्तोत्र ( Shri Vyankatesh Stotra )
श्री गणेशाय नम: | श्री व्यंकटशाय नम: ||
ॐ नमो जी हेरंबा | सकळादि तू प्रारंभा | आठवूनी तुझी स्वरूपशोभा | वंदन भावे करीतसे || १ || नमन माझे हंसवाहिनी | वाग्वरदे विलासिनी | ग्रंथ वदावया निरुपणी | भावार्थखाणी जयामाजी || २ || नमन माझे गुरुवर्या | प्रकाशरूपा तू स्वामिया | स्फूर्ति द्यावी ग्रंथ वदावया | जेणे श्रोतया सुख वाटे || ३ || नमन माझे संतसज्जना | आणि योगिया मुनिजना | सकळ श्रोतया साधुजना | नमन माझे साष्टांगी || ४ || ग्रंथ ऐका प्रार्थनाशतक | महादोषांसी दाहक | तोषुनिया वैकुंठनायक | मनोरथ पूर्ण करील || ५ || जयजयाजी व्यंकटरमणा | दयासागरा परिपूर्णा | परंज्योती प्रकाशगहना | करितो प्रार्थना श्रवण कीजे || ६ || जननीपरी त्वां पाळिले | पितयापरी त्वां सांभाळिले | सकळ संकटांपासुनि रक्षिले | पूर्ण दिधले प्रेमसुख || ७ || हे अलोलिक जरी मानावे | तरी जग हे सृजिले आघवे | जनक जननीपण स्वभावें | सहज आले अंगासी || ८ || दीननाथा प्रेमासाठी | भक्त रक्षिले संकटी | प्रेम दिधले अपूर्व गोष्टी | भजनासाठी भक्तांच्या || ९ || आता परिसावी विज्ञापना | कृपाळुवा लक्ष्मीरमणा | मज घालोनि गर्भाधाना | अलोलिक रचना दाखविली || १० || तुज न जाणता झालो कष्टी | आता दृढ तुझे पायी घातली मिठी | कृपाळुवा जगजेठी | अपराध पोटी घाली माझे || ११ || माझिया अपराधांच्या राशी | भेदोनी गेल्या गगनासी | दयावंता हृषीकेशी | आपुल्या ब्रीदासी सत्य करी || १२ || पुत्राचे सहस्र अपराध | माता काय मानी तयाचा खेद | तेवी तू कृपाळू गोविंद | मायबाप मजलागी || १३ || उडदांमाजी काळेगोरे | काय निवडावे निवडणारे | कुचलिया वृक्षांची फळे | मधुर कोठोनी असतील || १४ || अराटीलागी मृदुता | कोठोनी असेल कृपावंता | पाषाणासी गुल्मलता | कैशियापरी फुटतील || १५ || आपादमस्तकावरी अन्यायी | परी तुझे पदरी पडिलो पाही | आता रक्षण नाना उपायी | करणे तुज उचित || १६ || समर्थांचे घरीचे श्र्वान | त्यासी सर्वही देती मान | तैसा तुझा म्हणवितो दीन | हा अपमान कवणाचा || १७ || लक्ष्मी तुझे पायांतळी | आम्ही भिक्षेसी घालोनी झोळी | येणे तुझी ब्रीदावळी | कैसी राहील गोविंदा || १८ || कुबेर तुझा भांडारी | आम्हां फिरविसी दारोदारी | यात पुरुषार्थ मुरारी | काय तुजला पै आला || १९ || द्रौपदीसी वस्त्रे अनंता | देत होतासी भाग्यवंता | आम्हांलागी कृपणता | कोठोनी आणिली गोविंदा || २० || मावेची करुनी द्रौपदी सती | अन्ने पुरविली मध्यराती | ऋषीश्र्वरांच्या बैसल्या पंक्ती | तृप्त केल्या क्षणमात्रे || २१ || अन्नासाठी दाही दिशा | आम्हां फिरविसी जगदीशा | कृपाळुवा परमपुरुषा | करुणा कैशी तुज न ये || २२ || अंगीकारी या शिरोमणि | तुज प्रार्थितो मधुर वचनी | अंगीकार केलिया झणी | मज हातींचे न सोडावे || २३ || समुद्रे अंगीकारीला वडवानळ | तेणे अंतरी होतसे विहवळ | ऐसे असोनी सर्वकाळ | अंतरी साठविला तयाने || २४ || कूर्मे पृथ्वीचा घेतला भार | तेणे सोडीला नाही बडिवार | एवढा ब्रम्हांडगोळ थोर | त्याचा अंगीकार पै केला || २५ || शंकरे धरिले हाळाहळा | तेणे नीळवर्ण झाला गळा | परी त्यागिले नाही गोपाळा | भक्तवत्सला गोविंदा || २६ || माझ्या अपराधांच्या परी | वर्णिता शिणली वैखरी | दृष्ट पतीत दुराचारी | अधमाहुनि अधम || २७ || विषयासक्त मंदमति आळशी | कृपण कुव्यसनी मलिन मानसी | सदा सर्वकाळ सज्जनांशी | द्रोह करी सर्वदा || २८ || वचनोक्ति नाही मधुर | अत्यंत जनांसी निष्ठुर | सकळ पामरांमाजी पामर | व्यर्थ बडिवार जगी वाजे || २९ || काम क्रोध मद मत्सर | हे शरीर त्यांचे बिढार | कामकल्पनेसी थार | दृढ येथे केला असे || ३० || अठरा भार वनस्पतींची लेखणी | समुद्र भरला मषीकरुनी | माझे अवगुण लिहिता धरणी | तरी लिहिले न जाती || ३१ || ऐसा पतित मी खरा | परी तू पतितपावन शारद्गधरा | तुवा अंगीकार केलिया गदाधरा | कोण दोषगुण गणील || ३२ || नीच रतली रायाशी | तिसी कोण म्हणेल दासी | लोह लागता परिसासी | पूर्वास्थिती मग कैंची || ३३ || गावीचे होते लेंडवोहळ | गंगेसी मिळता गंगाजळ | कागविष्ठेचे झाले पिंपळ | तयांसी निद्य कोण म्हणे || ३४ || तसा कुजाति मी अमंगळ | परी तुझा म्हणवितो केवळ | कन्या देऊनिया कुळ | मग काय विचारावे || ३५ || जाणत असता अपराधी नर | तरी का केला अंगीकार | अंगीकारावरी अव्हेर | समर्थे न केला पाहिजे || ३६ || धाव पाव रें गोविंदा | हाती घेवोनिया गदा | करी माझ्या कर्माचा चेंदा | सच्चिदानंदा श्रीहरी || ३७ || तुझिया नामाची अपरिमित शक्ति | तेथें माझी पापे किती | कृपाळुवा लक्ष्मीपती | बरवे चित्ती विचारी || ३८ || तुझे नाम पतितपावन | तुझे नाम कलिमलदहन | तुझे नाम भवतारण | संकटनाशन नाम तुझे || ३९ || आता प्रार्थना ऐके कमळापती | तुझे नामी राहे माझी मती | हेचि मागतो पुढतपुढती | परंज्योती व्यंकटेशा || ४० || तू अनंत तुझी अनंत नामे | तयांमाजी अति सुगमे | ती मी अल्पमति प्रेमे | स्मरूनी प्रार्थना करीतसे || ४१ || श्रीव्यंकटेशा वासुदेवा | प्रद्युमन्ना अनंता केशवा | संकर्षणा श्रीधरा माधवा | नारायणा आदिमूर्ते || ४२ || पद्मनाभा दामोदरा | प्रकाशगहना परात्परा | आदिअनादि विश्वंभरा | जगदुद्धारा जगदीशा || ४३ || कृष्णा विष्णो हृषीकेशा | अनिरुद्धा पुरुषोत्तमा परेशा | नृसिंह वामन भार्गवेशा | बौद्ध कलंकी निजमूर्ती || ४४ || अनाथरक्षका आदिपुरुषा | पूर्णब्रम्ह सनातन निर्दोषा | सकळ मंगळ मंगळाधीशा | सज्जनजीवना सुखमूर्ते || ४५ || गुणातीता गुणज्ञा | निजबोधरूपा निमग्ना | शुद्ध सात्विका सुज्ञा | गुणप्राज्ञा परमेश्वरा || ४६ || श्रीनिधीश्रीवत्सलांछन धरा | भयकृद्भयनाशना गिरीधरा | दृष्टदैत्यसंहारकरा | वीर सुखकरा तू एक || ४७ || निखिल निरंजन निर्विकारा | विवेकखाणी- वैरागरा | मधुमुरदैत्यसंहारकरा | असुरमर्दना उग्रमुर्ते || ४८ || शंखचक्रगदाधरा | गरुडवाहना भक्तप्रियकरा | गोपीमनरंजना सुखकरा | अखंडित स्वभावे || ४९ || नानानाटक - सूत्रधारिया | जगद्व्यापका जगद्वर्या| कृपासमुद्रा करुणालया | मुनिजनध्येया मूळमूर्ति || ५० || शेषशयना सार्वभौमा | वैकुंठवासिया निरुपमा | भक्तकैवारिया गुणधामा | पाव आम्हां ये समयी || ५१ || ऐसी प्रार्थना करुनी देवीदास | अंतरी आठविला श्रीव्यंकटेश | स्मरता हृदयी प्रकटला ईश | त्या सुखासी पार नाही || ५२ || हृदयी आविर्भवली मूर्ति | त्या सुखाची अलोलिक स्थिती | आपुले आपण श्रीपती | वाचेहाती वदवीतसे || ५३ || ते स्वरूप अत्यंत सुंदर | श्रोती श्रवण कीजे सादर | सावळी तनु सुकुमार | कुंकुमाकार पादपद्मे || ५४ || सुरेख सरळ अंगोळिका | नखे जैसी चंद्ररेखा | घोटीव सुनीळ अपूर्व देखा | इंद्रनिळाचियेपरी || ५५ || चरणी वाळे घागरिया | वाकी वरत्या गुजरिया | सरळ सुंदर पोटरिया | कर्दळीस्तंभाचियेपरी || ५६ || गुडघे मांडिया जानुस्थळ | कटितटि किंकिणी विशाळ | खालते विश्वंउत्पत्तिस्थळ | वरी झळाळे सोनसळा || ५७ || कटीवरते नाभिस्थान | जेथोनि ब्रम्हा झाला उत्पन्न | उदरी त्रिवळी शोभे गहन | त्रैलोक्य संपूर्ण जयामाजी || ५८ || वक्ष:स्थळी शोभे पदक | पाहोनी चंद्रमा अधोमुख | वैजयंती करी लखलख | विद्युल्लतेचियेपरी || ५९ || हृदयी श्रीवत्सलांछन | भूषण मिरवी श्रीभगवान | तयावरते कंठस्थान | जयासी मुनिजन अवलोकिती || ६० || उभय बाहुदंड सरळ | नखे चंद्रापरीस तेजाळ | शोभती दोन्ही करकमळ | रातोत्पलाचियेपरी || ६१ || मनगटी विराजती कंकणे | बाहुवटी बाहुभूषणे | कंठी लेइली आभरणे | सूर्यकिरणे उगवली || ६२ || कंठावरुते मुखकमळ | हनुवटी अत्यंत सुनीळ | मुखचंद्रमा अति निर्मळ | भक्तस्नेहाळ गोविंदा || ६३ || दोन्ही अधरांमाजी दंतपंक्ती | जिव्हा जैसी लावण्यज्योती | अधरामृतप्राप्तीची गती | ते सुख जाणे लक्ष्मी || ६४ || सरळ सुंदर नासिक | जेथे पवनासी झाले सुख | गंडस्थळीचे तेज अधिक | लखलखीत दोन्ही भागी || ६५ || त्रिभुवनीचे तेज एकटवले | बरवेपण शिगेसी आले | दोन्ही पातयांनी धरिले | तेज नेत्र श्रीहरीचे || ६६ || व्यंकटा भृकुटिया सुनीळा | कर्णद्वयाची अभिनव लीळा | कुंडलांच्या फाकती कळा | तो सुखसोहळा अलोलिक || ६७ || भाळ विशाळ सुरेख | वरती शोभे कस्तूरीटिळक | केश कुरळ अलोलिक | मस्तकावरी शोभती || ६८ || मस्तकी मुकुट आणि किरीटी | सभोवती झिळमिळ्याची दाटी | त्यावरी मयूरपिच्छांची वेटी |ऐसा जगजेठी देखिला || ६९ || ऐसा तू देवाधिदेव | गुणातीत वासुदेव | माझिया भक्तिस्तव | सगुणरूप झालासी || ७० || आता करू तुझी पूजा | जगज्जीवना अधोक्षजा | आर्ष भावार्थ हा माझा | तुज अर्पण केला असे || ७१ || करुनी पंचामृतस्नान | शुद्धोधक वरी घालून | तुज करू मंगलस्नान | पुरुषसूक्ते करुनिया || ७२ || वस्त्रे आणि यज्ञोपवीत | तुजलागी करू प्रीत्यर्थ | गंधाक्षता पुष्पे बहुत | तुजलागी समर्पू || ७३ || धूप दीप नैवेध्य | फल तांबूल दक्षिणा शुद्ध | वस्त्रे भूषणे गोमेद | पद्मरागादिकरून || ७४ || भक्तवत्सला गोविंदा | ही पूजा अंगीकारावी परमानंदा | नमस्कारुनी पादारविंदा | मग प्रदक्षिणा आरंभिली || ७५ || ऐसा षोडशोपचारे भगवंत | यथाविधी पूजिला हृदयात | मग प्रार्थना आरंभिली बहुत | वरप्रसाद मागावया || ७६ || जयजयाजी श्रुतिशास्त्रआगमा | जयजयाजी गुणातीत परब्रम्हा | जयजयाजी हृदयवासिया रामा | जगदुद्धारा जगद्गुरो || ७७ || जयजयाजी पंकजाक्षा | जयजयाजी कमळाधीशा | जयजयाजी पूर्णपरेशा | अव्यक्तव्यक्ता सुखमूर्ते || ७८ || जयजयाजी भक्तरक्षका | जयजयाजी वैकुंठनायका | जयजयाजी जगपालका | भक्तांसी सखा तू एक || ७९ || जयजयाजी निरंजना | जयजयाजी परात्परगहना | जयजयाजी शुन्यातीत निर्गुणा | परिसावी विज्ञापना एक माझी || ८० || मजलागी देई ऐसा वर | जेणे घडेल परोपकार | हेचि मागणे साचार | वारंवार प्रार्थितसे || ८१ || हा ग्रंथ जो पठण करी | त्यासी दु:ख नसावे संसारी | पठणमात्रे चराचरी | विजयी करी जगाते || ८२ || लग्नार्थीयाचे व्हावे लग्न | धनार्थियासी व्हावे धन | पुत्रार्थियासे मनोरथ पूर्ण | पुत्र देऊनी करावे || ८३ || पुत्र विजयी आणि पंडित | शतायुषी भाग्यवंत | पितृसेवेसी अत्यंत रत | जायचे चित्त सर्वकाळ || ८४ || उदार आणि सर्वज्ञ | पुत्र देई भक्तांलागून | व्याधिष्ठांची पीडा हरण | तत्काळ कीजे गोविंदा || ८५ | क्षय अपस्मार कुष्ठादिरोग | ग्रंथपठणे सरावा भोग | योगाभ्यासियासी योग | पठणमात्रे साधावा || ८६ || दरिद्री व्हावा भाग्यवंत | शत्रूचा व्हावा नि:पात | सभा व्हावी वश समस्त | ग्रंथपठणेकरुनिया || ८७ || विद्यार्थीयासी विद्या व्हावी | युद्धी शस्त्रे न लागावी | पठणे जगात कीर्ती व्हावी | साधु साधु म्हणोनिया || ८८ || अंती व्हावे मोक्षसाधन | ऐसे प्रार्थनेसी दीजे मन | एवढे मागती वरदान | कृपानिधे गोविंदा || ८९ || प्रसन्न झाला व्यंकटरमण | देवीदासासी दिधले वरदान | ग्रंथाक्षरी माझे वचन | यथार्थ जाण निश्चयेसी || ९० || ग्रंथी धरोनी विश्वास | पठण करील रात्रंदिवस | त्यालागी मी जगदीश | क्षण एक न विसंबे || ९१ || इच्छा धरुनी करील पठण | त्याचे सांगतो मी प्रमाण | सर्व कामनेसी साधन | पठण एक मंडळ || ९२ || पुत्रार्थियाने तीन मास | धनार्थियाने एकवीस दिवस | कन्यार्थियाने षण्मास | ग्रंथ आदरे वाचवा || ९३ || क्षय अपस्मार कुष्ठादिरोग | इत्यादि साधने प्रयोग | त्यासी एक मंडळ सांग | पठणे करुनी कार्यसिद्धी || ९४ || हे वाक्य माझे नेमस्त | ऐसे बोलिला श्रीभगवंत | साच न मानी जयाचे चित्त | त्यासी अध:पात सत्य होय || ९५ || विश्वास धरील ग्रंथपठणी | त्यासी कृपा करील चक्रपाणी | वर दिधला कृपा करूनि | अनुभवे कळो येईल || ९६ || गजेंद्राचिया आकांतासी | कैसा पावला हृषीकेशी | प्रल्हादाचिया भावार्थासी | स्तंभातूनि प्रकटला || ९७ || वज्रासाठी गोविंदा | गोवर्धन परमानंदा | उचलोनिया स्वानंदकंदा | सुखी केलें तये वेळी || ९८ || वत्साचेपरी भक्तांसी | मोहे पान्हावे धेनु जैसी | मातेच्या स्नेहतुलनेसी | त्याचपरी घडलेसे || ९९ || ऐसा तू माझा दातार | भक्तासी घालिसी कृपेची पाखर | हा तयाचा निर्धार | अनाथनाथ नाम तुझे || १०० || श्री चैतन्यकृपा अलोकिक | संतोषोनी वैकुंठनायक | वर दिधला अलोकिक | जेणे सुख सकळांसी || १०१ || हा ग्रंथ लिहिता गोविंद | या वचनी न धरावा भेद | हृदयी वसे परमानंद | अनुभवसिद्ध सकळांसी || १०२ || या ग्रंथीचा इतिहास | भावे बोलिला विष्णुदास | आणिक न लागती सायास | पठणमात्रे कार्यसिद्धी || १०३ || पार्वतीस उपदेशी कैलासनायक | पूर्णानंद प्रेमसुख | त्याचा पार न जाणती ब्रम्हादिक | मुनि सुरवर विस्मित || १०४ || प्रत्यक्ष प्रकटेल वनमाळी | त्रैलोक्य भजत त्रिकाळी | ध्याती योगी आणि चंद्रमौळी | शेषाद्रीपर्वती उभा असे || १०५ || देवीदास विनवी श्रोतया चतुरा | प्रार्थनाशतक पठण करा | जावया मोक्षाचिया मंदिरा | काही न लागती सायास || १०६ || एकाग्रचित्ते एकांती | अनुष्ठान कीजे मध्यराती | बैसोनिया स्वस्थचित्ती | प्रत्यक्ष मूर्ति प्रकटेल || १०७ || तेथें देहभावासी नुरे ठाव | अवघा चतुर्भुज देव | त्याचे चरणी ठेवोनि भाव | वरप्रसाद मागावा || १०८ ||
इति श्री देवी दास विरचितं श्री व्यंकटेश स्तोत्रं संपूर्णम | श्री व्यंकटेशार्पणमस्तु ||
श्री महालक्ष्म्यष्टकम् ( Shri Mahalakshmyashtak )
श्री गणेशाय नम: || इंद्र उवाच |
नमस्तेSस्तु महामाये श्रीपाठे सुरपूजिते |
शंखचक्र गदाहस्ते महालक्ष्मी नमोSस्तुते || १ ||
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुर भयंकरी |
सर्वपापहरे देवी महालक्ष्मी नमोSस्तुते || २ ||
सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदृष्टभयंकरी |
सर्व दु:खहरे देवी महालक्ष्मी नमोSस्तुते || ३ ||
सिद्धीबुद्धीप्रदे देवी भुक्तिमुक्तिप्रदायिनी |
मंत्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोSस्तुते || ४ ||
आद्यंतरहिते देवी आद्यशक्ति महेश्वरी |
योगजे योगसंभूते महालक्ष्मी नमोSस्तुते || ५ ||
स्थूल सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोदरे |
महापापहरे देवी महालक्ष्मी नमोSस्तुते || ६ ||
पद्मासनस्थिते देवी परब्रम्हस्वरूपिणी |
परमेशि जगन्मार्तमहालक्ष्मी नमोSस्तुते || ७ ||
श्र्वेतांबरधरे देवी नानालंकार भूषिते |
जगस्थिते जगन्मार्तमहालक्ष्मी नमोSस्तुते || ८ ||
महालक्ष्म्यष्टकस्तोत्रं य: पठेत भक्तिमान्नर: |
सर्वसिद्धीमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा || ९ ||
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम |
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धनधान्य समन्वित: || १० ||
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम् |
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा || ११ ||
|| इतींद्रकृत: श्री महालक्ष्म्यष्टकस्तव: संपूर्ण: ||
|| श्री दुर्गासप्तशती सार || ( Shri Durgasaptapati Saar )
या माया मधुकैटभप्रमथनी या महिषोन्मूलिनी |
या धुम्रेक्षणचंण्डमुण्डमथनी या रक्तबीजाशनी ||
शक्ति: शुंभनिशुंभ दैत्यदलिनी , या सिद्धीलक्ष्मी: परा |
स चण्डी नवकोटिमूर्तिसहिता मां पातु विश्र्वेश्र्वरी || १ ||
स्तुता सुरै: पूर्वमभीष्टसंश्रयात्तथा सुरेन्द्रेण दिनेषु सेविता |
करोतु सा न: शुभहेतुरीश्र्वरी शुभानि भद्राण्याभिहन्तु चापद: || २ ||
या सांप्रतं चोध्दतदैत्यतापिरैरस्माभिरीषा च सुरैर्नमस्यते |
करोतु सा न: शुभहेतुरीश्र्वरी शुभानि भद्राण्याभिहन्तु चापद: || ३ ||
या च स्मृता तत्क्षणमेव हन्ति न: सर्वापदो भक्तीविनम्रमूर्तिभि:|
करोतु सा न: शुभहेतुरीश्र्वरी शुभानि भद्राण्याभिहन्तु चापद: || ४ ||
सर्वबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरी |
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरीविनाशनम || ५ ||
सर्व मंगल मांग्यले शिवे सर्वार्थसाधिके |
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोSस्तुते || ६ ||
सृष्टीस्थितीविनाशानाम शक्तिभूते सनातनि |
गुणाश्रये गुणमये नारायणी नमोSस्तुते || ७ ||
शरणागतदीनार्त परित्राण परायणे |
सर्वस्यार्तिहरे देवी नारायणी नमोSस्तुते || ८ ||
सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते |
भयेभ्यस्त्राही नो देवी दुर्गे देवी नमोSस्तुते || ९ ||
श्री हनुमान चालीसा ( Shri Hanuman Chalisa )
नीजमनाचिया आदर्शातें | गुरुचरणांचे रज स्वच्छ करीते | वर्णितो रघुवीर दास यशाते | अति नम्र होऊनी || १ || जेणे चारही पुरुषार्थांची पूर्ति | अंगेच वोळती चारी मुक्ती | आणिक रामचंद्रपदी भक्ती | आपैसे उदयो पाविजे || २ || या तनूसी जानुनी मतिहीन | करीतसे पावन सुत स्मरण | मज करो मोह क्लेश हीन | बल बुद्धी देवो तो || ३ || समस्त विकार करुनी नष्ट | प्राप्त होवो सर्व इष्ट | वरदान देवो वरिष्ठ | बुद्धीमंतांमाजी जो || ४ || जय जय हनुमंता ज्ञानसागरा | जय कपीश्र्वरा गुणसागरा | तव यशे उज्वल सारा | त्रिलोक होय नि:संशय || ५ || तू अतुलित पराक्रमी वीर | रामप्रभूंचा दूत साचार | अंजनीसुत पवनकुमार | तेजोरुपी चैतन्य || ६ || तू विक्रमी वज्रांग महावीर | सुमती वाढवी कुमति निवार | तुझिया चरणी खरोखर | शुध्द भाव गंगोत्री || ७ || तप्त कांचनासमान कांती | सुंदर वेश वर्णू किती | नवोदित भानूची दीप्ती | लज्जित होय समोरी || ८ || कानी कुंडले हालती | वज्र सरसाविले हाती | ध्वजा संतत फडकती | अति उंच धरियली || ९ || तेजे सौदामिनी - समान | यज्ञोपवीत शोभायमान | कि रामचिंतन स्मरण | सूत्ररूपे विराजे || १० || कपीश्र्वरा तू रुद्राचा अंश | कार्यशील चैतन्य विशेष | केसरीनंदन जग नि:शेष | वंदन करी तव चरणी || ११ || की तु तेजाचा भास्कर | गुणी थोर अतिचतुर | तुज भजता कोणी आतुर | संकटमुक्त होत असे || १२ || तुझिया हृदयकोंदणी | सीता लक्ष्मण बाणपाणि | बैसले प्रेमे येउनी | रामचरित्र तु गासी || १३ || सीताशुद्धी सूक्ष्मरूपे करी | लंकादहनी विकटरूप धरी | भीमरूपी तु असुर संहारी | रामकार्यामाझारी || १४ || लक्ष्मणाते उठवायासी | तुवां आणले संजीवनीसी | रघुपतीने धरुनी उराशी | अतिप्रेमे आलिंगले || १५ || हनुमंता प्राणप्रिया सखया | लक्ष्मण भरतासम माया | तुजसी करीत रामराया | यश गाजेल सर्वत्र || १६ || सहस्त्रवदन थकेल | परी तव प्रतापसीमा न पावेल | ऐसे म्हणूनिया वेळोवेळ | राम देई आलिंगना || १७ || तूते वंदिती सनकादिक | मुनिश्र्वर देवता ब्रम्हादिक | नारद शारदा अनंत आणिक | अहिपतीही तुज नमिती || १८ || तव गुणगौरवा वर्णयातें | शक्ती नसे यम कुबेराते | दिक्पाल आणि कवींचे तेथे | काय सामर्थ्य हनुमंता || १९ || सुग्रीवावरी उपकार बहुत | तुवां केले हो पवनसुत | रामभेटीने स्वराज्य प्राप्त | करविलेस तयालागी || २० || तुझिया मताप्रमाणे | स्वहित साधले बिभीषणाने | लंकेचे राज्य ते भोगणे | राम मैत्री भाग्य असे || २१ || उगवते भानुबिंब प्रखर | सहस्त्र योजने जरी दूर | समजुनि तें फल मधुर | केले उड्डाण जन्मतां || २२ || मुखी रामांचे नाम वसे | मौलीवरी राममुद्रिका असे | समुद्र लंघिता अनायासे | भक्तवत्सल रामबळे || २३ || जरी तव कृपा वळेल | तरी दुष्कर तें सुकर होईल | ऐसा प्रभाव त्रिकाळ | प्रत्ययासी भक्तजनी || २४ || रामद्वारींचा द्वारपाळ | आज्ञा नसता एकही पळ | स्थान सोडूनी न जाशील | सदा कल्याण उपस्थित || २५ || भक्त तुजसी येता शरण | सर्व सुख - संपन्न जीवन | तुवां तयांचे करिता रक्षण | भय कोणते राहील || २६ || वेळी निजतेज आवरुनी | वेळी विराट रूप घेउनी | हाक देता अंबर अवनी | पडसादे त्या दचकती || २७ || महावीर महावीर गर्जना | पडतां पिशाच्चांचिया श्रवणा | धरिती भिऊनि देश नाना | पळुनी जाती दिगंती || २८ | हनुमंत बलवीर जपतां | रोगपीडा नासती तत्वतां | संकटे जाती पाहता पाहता | निरसन होई तत्काळ || २९ || जरी हनुमंत धरिला ध्यानी | कर्म करिता काया वाचा मनी | तरी आपत्ती सर्व हरुनी | सुख देतोस निजभक्ता || ३० || सर्वश्रेष्ठ राम तपस्वी | तु सेवक तयांचा मनस्वी | तुझिया प्रसादे वर्चस्वी | रामभक्त ते सर्वत्र || ३१ || पूर्ण करिता मनोरथासी | पावती संपूर्ण जीवनासी | सीमा नसे सद्भाग्यासी | प्रताप तुझा त्रिभुवनी || ३२ || चारी युगी तुझा प्रताप | असे सर्वदा सर्वांसी ज्ञात | त्रिलोक तव प्रभावे उजळीत | काय वर्णावे महिमान || ३३ || तु साधुसंतांचा रक्षणकर्ता | तु असुरांचा संहारकर्ता | तु सकळांचा आवडता | रघुसेवका महारुद्रा || ३४ || सीतामाई देई वरदान | तेणे उदार तु हनुमान | अष्टसिद्धी वश तुजलागून | नवविध निधी देतोसी || ३५ || आणि नवविधा भक्तीमर्म | वरुनी नाना भाव अंतरी सम | तुवां पाहिला श्रीराम | आत्मारूपे ऐक्यत्वे || ३६ || तुजजवळी राम रसायन | भवव्याधीवरी उपाय जाण | सदा करावे निवसन | संनिध हो आमुच्या || ३७ || करितां तव भक्ती हनुमंता | होय रुजू ती रघुनाथपदा | जन्मोजन्मींच्या आपदा | विरुनी जाती तत्काळ || ३८ || आणि होता देहपात | जन्म लाभे अयोध्या प्रांतात | ऐसे फळ रामभक्तांप्रत | प्राप्त होय तव कृपे || ३९ || अन्य सर्वही दिव्य देवता | नच धराव्या चित्ती आता | शरण रिघावें श्रीहनुमंता | संकट पीडा सर्व हरी || ४० || जय जय हनुमंता गोस्वामी | तुम्हीच कृपाळू माझे स्वामी | सद्गुरू सर्वस्व तुम्ही | शरणागता सांभाळा || ४१ || तूच माता पिता बांधव | तूच भेटविसी मज राघव | हरण करी आता भव | देई मुक्ती प्रभुचरणी || ४२ || शतावर्तने बंधन सुटे | नित्यपाठे हनुमंत भेटे | ध्याने निरसतील खेटे | चौऱ्याऐंशी फेऱ्यांचे || ४३ || सर्व सिद्धी भुक्ती मुक्ती | चाळीस ओव्यांची संगती | देतील भक्तां शिवपार्वती | मूळ रुद्ररूपाने || ४४ || तुलसीदास चातक तृषार्त | रामनाम मेघ करी तृप्त | सदा प्रेरणा हृदयस्थ | देतसे श्री रघुवीर || ४५ || ऐसे स्तोत्र हे कवचरूपाने | ओवीरूप केले दिवाकराने | प्रसन्न होऊनी पवनसुताने | आज्ञा दिधली म्हणुनी || ४६ ||
शुभं भवतु !
आईचा जोगवा ( Aaicha Jogava )
अनादि निर्गुण प्रगटली भवानी | मोह महिषासुर मर्दनालागुनी |
त्रिविधतापाची कराया झाडणी | भक्तालागोनी पावसी निर्वाणी || धृ ||
आईचा जोगवा जोगवा मागेन | द्वैत्य सारुनी माळ मी घालीन ||
हाती बोधाचा झेंडा मी घेईन | भेदरहित वारीसी जाईन || १ ||
नवविध भक्तीच्या करीन नवरात्रा | करुनी पोटी मागेन ज्ञानपुत्रा ||
धरीन सदभाव अंतरीच्या मित्रा | दंभ संसार सांडीन कुपात्रा || २ ||
पूर्ण बोधाची घेऊन परडी | आशा तृष्णेच्या पाडीन दरडी ||
मनोविकार करीन कुरवंडी | अद्भुत रसाची भरीन दुरडी || ३ ||
आतां साजणी जाले मी नि:संग | विकल्प नवऱ्याचा सोडीयला संग ||
कामक्रोध हे सोडीयले मांग | केला मोकळा मारग सुरंग || ४ ||
आईसा जोगवा मागुनी ठेवला | जाऊनी महाद्वारी नवस म्यां फेडिला ||
एकपणे जनार्दन देखिला | जन्ममरणाचा फेरा चुकविला || ५ ||
शिवलीलामृताच्या बेचाळीस ओव्या ( पूर्ण शिवलीलामृताचे वाचन करता येत नसेल तर ह्या बेचाळीस ओव्या म्हटल्या तरी चालतात असे शिवलीलामृताच्या पोथीत सांगितलेले आहे )
